Sunday, August 22, 2010

ज़िन्दगी खुल के जीयो...


ज़िन्दगी है छोटी सी, इसका हर लम्हा जी ले यार,
हर लम्हे में ज़िन्दगी है, अपने गम भुलाकर जी ले यार...

देख छोटी सी चिड़िया, फिर से चहक रही है
तू क्यूँ सोचता है की सिर्फ तेरी ही किस्मत बुरी है...

क्या हुआ अगर कम salaryमिलती है तुझे?
ये सोचकर ही खुश होले, तू अमीर है किसी से

आज पिज्जा ना सही, दाल-रोटी ही खाले...
कल बिरियानी फिर खायेगा, इसी ख्याल में मुस्कुराले...

पकोड़े सी शकल क्यूँ है बनाई,
आईने में देख के मुस्कुरा,
कटरीना नहीं मिली तो रोता है क्यूँ,
तेरी बीवी किसी से कम है क्या॥

फ्रेंड ने लेक्चर फिर से दिया,
२ मिनट की तो बात है...
देख उन्ही दोस्तों का फिर,
ज़िन्दगी भर का साथ है...

क्या अकेला कार में बैठा, सन्नाटे में गुनगुनाता है?
कभी बस की भीड़ में खो जा, हर बंद अपनी धुन सुनाता है...

आज ठोकर फिर से लग गयी?
गलती हो गयी, जाने दे यार॥
२ रुपये के लिए क्यूँ बहस करता है?
आज भाजीवाले को भी कमाने दे यार...

किसी ने फिर से डांट दिया,
छोड़ ना, कौन सा वो तेरा रिश्तेदार है?
अगर रिश्ता निभाना है उम्रभर,
तो थोड़ी सी डांट झेल ले यार...

किसी ने तरक्की पाली तुझसे पहले,
तू क्यूँ हरदम भागे है?
देख तू कल था जहाँ,
आज वहां से आगे है...

inbox खाली पड़ा है,
तू ही सबको मेसेज कर डाल...
अकेला हरदम क्यूँ पाता है खुदको...
इक बार फोनबुक पे भी नज़र दाल...

कल की गलती को आज फिर से याद करता है,
अपने ही अँधेरे में घुट घुट के मरता है...
भूल जा जो तेरा कभी हो ना सका,
जो तेरे पास है हमेशा, उसको तो जी ले यार...

प्यार थोडा सा ही है, चलेगा...
दोस्त २-४ ही सही, चलेगा...
अपनी बाहें खुली रख,
जो तेरा है, तुझको मिलेगा...

बॉस से हमेशा प्रॉब्लम है तुझको,
आज chocolate ऑफर कर दे तू उसको,
काम तेरा बहुत ज्यादा है, पता है,
कभी काम दूसरों का भी शेयर करके देखो...

नया कोई दोस्त बनता नहीं,
पुराने बिछड़े दोस्त ही ढूंढ ले...
ऑफिस में बैठा बोर हो गया,
किसी अपने को फिर से याद करले...

सुबह उठ कुछ इस तरह,
जैसे नई ज़िन्दगी मिली हो,
रात को सुकून के सांसें ले,
नींद जैसे सालों बाद खीली हो...

चाँद को आज घूर ले,
सपनो में फिर से खो जा यार,
दौड़ भागकर थक गया होगा,
इक पल चैन के नींद सो जा यार...

जितना मिला, ज्यादा है सोच ले,
क्यूँ किस्मत पे रोना बार बार,
देख खुश वो भी हैं कभी,
जिनका नहीं है कोई घर बार...

किसी बच्चे की हंसी में खो जा,
अपना बचपन फिर से जी ले,
सड़कों में फिर से उतरकर,
अपने सारे गम पीले...

किसी का कुछ नहीं बिगड़ने वाला,
फिर क्यूँ तू खुद से उदास है,
हंस दे एक बार खुद पे,
तेरी ज़िन्दगी तो तेरे पास है...

एक दिन सब चले जायेंगे,
ये वक़्त कभी ना आएगा...
इस वक़्त को जिंदा होकर जी ले,
तू कल इस वक़्त पे मुस्कुराएगा।

ज़िन्दगी है छोटी सी, इसका हर लम्हा जी ले यार...
हर लम्हे में ज़िन्दगी है, अपने गम भुलाकर जी ले यार...


-सौरभ

Monday, June 1, 2009

मै, मेरी ज़िन्दगी और तुम ...

मै, मेरी ज़िन्दगी और तुम



ज़िन्दगी के अनजान सफर में,
कोई मंजिल ना थी, कोई कारवां ना था...
कोई सपना नही था इन आंखों में,
कोई साथी नही था, मेरी राहों में,
कोई लगन नही, कोई बैर नही,
कोई अपना नही, कोई गैर नही॥

ना कोई था मेरे आंसुओं को गालों से हटाने वाला,
ना कोई गम में अपने सीने से लगाने वाला।
दिल मेरा भी धक्-धक् करता था,
हाँ; मैं भी किसी पे मरता था,
पर कोई ना मुझको सुनने वाला था,
उस कमरे में नही कोई उजाला था;
जहाँ मैं और मेरी तन्हाई थी,
मुझसे दूर, मेरी ही परछाई थी।

क्या बचा था साँस लेने के सिवा,
आंसुओं को आँखों में पनाह देने के सिवा,
थक जाती थी ज़िन्दगी जहाँ कोने में,
बिक जाती थी हँसी जहाँ रोने में,

उसी अंधेरे कमरे से बाहर, मैं निकला एक दिन, जिंदगी की तलाश में,
सोये हुए दिल और भटकती हुई लाश में।
उसी सफर के एक मोड़ में,
मैंने देखा तुम्हे एक पल,
और दिल में हुई एक हलचल...
मुझे पहली बार लगा ज़िन्दगी कितनी खूबसूरत है,
शायद, शायद मुझे तुम्हारी ही ज़रूरत है।

बिन पूछे ही मेरे, तुमने थामा मुझे,
और ले गई सतरंगी आसमाँ की ओर,
पहली बार मैंने हवा को चूमा,
और मेरे जीवन में हुई नई भोर...

मैंने सुना पंछियों को गाते हुए,
सूरज को बादलों में शर्माते हुए,
फूलों को भी मैंने फीका पाया,
जब देखा तुम्हे मुस्कुराते हुए...

जब बालों को तुमने चेहरे से हटाया,
चाँद को करीब मैंने अपने पाया॥
तुम्हारी पलकें जब जब झुकी,
मैंने ख़ुद को कहीं और पाया,

शायद ये तुम्हारा जादू है, या मेरी तपस्या का फल,
या कोई मीठा सपना, जो तुमको पाऊं मैं हर पल॥

जब धीमे कदमो से तुम यूँ चुपके चुपके आती हो,
हौले हौले जाने कब दिल में उतर जाती हो,
दस्तक सी होती है कहीं,
जब तुम आंखों से कुछ बोल जाती हो,
जाने कब मेरे जख्मों पे तुम, चुपके से मरहम लगाती हो।

पर जब भी तुम आती हो, साँसे थम सी जाती हैं,
धड़कने तेज़ होने लगती हैं,
और जुबाँ सिल जाती है॥
शायद कभी मैं ना कह पाऊं,
पर दिल ने लिखी तुझे एक पाती है...
"तू कौन है, कोई अप्सरा तो नही,
जो दिल को वश में कर जाती है...
तू कौन है, कोई परी तो नही,
जो हँसा के फ़िर छोड़ जाती है...
तू कौन है, कोई रानी तो नही,
जो प्रेमी को गुलाम बनाती है...
पर जो भी है, मेरे दिल की मल्लिका,
मेरे मन को एक तू ही भाती है,
सिर्फ़ तू ही मेरी जीवनसाथी है,
तेरे लिए ही अब मेरी साँसे,
तू ही बस मेरा जीवन,
तेरी हर खुशी, अब मेरा दामन,
तुझपे लूटा दूँ मेरा तन मन धन ।"

बस इतना है अब तुमसे कहना... तुम हो मेरा अनमोल गहना...
मेरे अंधेरों में पहली किरण, मेरे घने जंगल की हिरन...
मेरे भटके राहों की दिशा, मेरा भविष्य मेरी तृषा...
अब तुमसे ही मेरी हर दास्तान है,
तू मेरी जमीं और मेरा आसमान है।

बस डरता हूँ मैं, उन अंधेरों से,
कभी वापस मुझे वहां छोड़ ना देना,
साथ जाने वाली इन राहों को,
मुझसे अलग कहीं मोड़ ना देना,
मर जाऊँगा अब की जो दुबारा मैं तनहा हुआ,
तू मेरा रब है, तुझसे है मांगी मैंने बस एक दुआ,

ये जनम जनम का साथ है, हम निभाएंगे जन्मो जनम॥
हर पल में एक नया जीवन है, तू जो मेरे संग है सनम॥

-
हम हमेशा साथ हैं,
"मैं, मेरी ज़िन्दगी और तुम"
-
सौरभ साहू








...To be continued...

Wednesday, March 25, 2009

ऐ नाजनीन...

नाजनीन...



तू है मेरी यादों में,
हर पल हर लम्हा...
तेरा चेहरा मेरी आंखों में,
जब भी मै तनहा....

तेरी मुस्कराहट मेरे कानो में...
गूंजती है शहनाइयां...
तेरे बालों की पनाह में,
है मेरा आशियाँ...

तेरी आँखों की रौशनी में,
खोया खोया सा ये जहाँ...
तेरे जिस्म की खुशबू में,
महका सा ये समां...

तेरा ख्याल ही है बस,
जन्नत की दुनिया...
तू पास जाए तो,
मर जाऊं ना यहाँ

खुशियाँ तेरा दामन चूमे,
बस रब से है यही दुआ...
तू हरदम मेरे ख्वाबों में रहे...
नाजनीन तेरा शुक्रिया...

-सौरभ साहू


तन्हाई...

हम तो तनहा ही रह गए...


थी एक तमन्ना जीने की,
था एक बहाना मरने का,
ना यादेंरही, ना वादें रहे,
हम तो तनहा ही रह गए...
.
सपने जो थे इन आंखों में,
आंसूं से घुल गए साँसों में,
ना जख्म बचे, ना दर्द रहा,
हम तो तनहा ही रह गए...

जाने कैसे वो अरमान थे,
जाने वो कैसी कशिश थी,
ना राहें मिली, ना मंजिल मिले,
हम तो तनहा ही रह गए...

चाहतें कुछ हम्मे भी थी,
दिल की कुछ ख्वाहिशें भी,
ना दिल रहा, ना धड़कन रही,
हम तो तनहा ही रह गए...

इस पराये मतलबी दुनीया में,
कोई ना अपना बन सका,
हम थे, हम ही रहे,
हम तो तनहा ही रह गए...

-सौरभ साहू

Tuesday, March 24, 2009

कविता सविता में आपका स्वागत है !

कविता सविता में आपका स्वागत है !

यहाँ पर हम बांटते हैं, अपनी रचनायें और भावनाएं

प्रस्तुत है, कुछ रचनाओं का संग्रह, सिर्फ़ आपके लिए...

-
सौरभ